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३९७ ॥ श्री कुदरत अली जी ॥


पद:-

ऐसी सँवसिया मुरलिया बजावै हो।

मधुर मधुर धुनि तान सप्तस्वर सम से बिलग न जावै हो।

छंइउ राग छत्तीस रागिनी सन्मुख निज दर्शावै हो।

तीन ग्राम सम तान सप्तस्वर धुनि श्रृङ्गार बोलावै हो।

साज आवरन छाड़ि दिब्य तन धरि हरि पर बलि जावै हो।५।

जल चर थल चर नभ चर मोहैं जड़ तन धरि चट धावै हो।

मूर्छित होय लखैं जस झांकी श्री राधे मुसक्यावैं हो।

बृज के सखा सखी नर नारी मौन बोलि नहि पावै हो।

यमुना जी जल बेग रोक दें पवन मन्द गति आवै हो।

स्वर्ग मृत्यु पाताल लोक के ज्ञान गुमान सेरावै हो।१०।

शेष कमठ बाराह दिग्गजौ पृथ्वी ध्यान लगावै हो।

दशौं दिशा दिग्पाल शान्ति ह्वै लय समाधि में जावै हो।

सात द्वीप नौ खण्ड चारि दश भुवन कि कौन चलावै हो।

भूषन बसन अन्न जल छूटै प्रेम कि फाँस फँसावै हो।

कुदरत अली कहैं हरि सुमिरौ आवागमन मिटावै हो।१५।