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३९२ ॥ श्री मंगू दास जी ॥


पद:-

भजन करने के हित नौका ये हरि नर तन बनाया है।

नाम बल्ली को लै सतगुरु से खेय कर पार पाया है।

बड़ा भवसिन्धु जग जानो बीच ही में डुबाया है।

बिना सतगुरु के को देवै बहुत लगता किराया है।

नहीं खरचा सो किमि जावैं बूड़ि उतराय आया है।५।

मिलै धन यह गरीबों को जो आपे को मिटाया है।

उसी पर चाह सब रखते वही सच्चा कहाया है।

ध्यान परकाश लय धुनि औ रूप सन्मुख में छाया है।

देव मुनि संग में खेलैं मित्र अपना बनाया है।

कहैं आनन्द की लीला प्रभू का यश सुनाया है।१०।

बजैं बाजा मधुर अनहद हद्द उनकी को पाया है।

कहैं मंगू वही जानै जियत में जो कमाया है।१२।