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३६० ॥ श्री भीषम दास जी ॥

(जमाति वाले)

 

दोहा:-

संतन की सेवा करै, हरि का सुमिरै नाम।

ठाकुर सेवा पाठ करि, जावै हरि के धाम।१।

भीषम दास कि बिनय यह, बिरथा समय न जाय।

हरि ही के कारज बिषे, देवै देह बिताय।२।