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३५२ ॥ श्री द्वारिका दास, झाड़ूबरदार जी ॥


चौपाई:-

सुमिरन पाठ नेम से करिये। अन्त समय हरि धाम सिधरिये।१।

कहैं द्वारिकादास सुनाई। हरि को भजिये छल तजि भाई।२।