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३३८ ॥ श्री पण्डित भगवान दास जी ॥

(अवध वासी)

 

 चौपाई:-

श्री गुरु चरण में हो विश्वासा। सो हरि पुर में पावै बासा।१।

जीव मात्र पर दाया राखै। खरा स्वभाव झूठ मति भाखै।२।

भोजन बसन कि तृष्णा त्यागै। तब बिराग फिर वाको जागौ।३।

हरि में तब होवै अनुरागा। तब वह जीव जानिये जागा।४।

सोरठा:-

कहैं दास भगवान, ता को नर तन सुफ़ल है।

नाहीं तो हैरान, दोनो ओर बिफ़ल है॥