३३५ ॥ श्री वैष्णव दास जी ॥
(अवध वासी)
दोहा:-
सुमिरन पूजन पाठ औ सन्तन की सेवकाय।
करैं जे तन मन प्रेम ते ते हरि धाम को जाँय।१।
सोरठा:-
कहैं वैष्णव दास, या में कछु संशय नहीं।
पर नारायण पास, बैठक सो पावै सही।१।
(अवध वासी)
दोहा:-
सुमिरन पूजन पाठ औ सन्तन की सेवकाय।
करैं जे तन मन प्रेम ते ते हरि धाम को जाँय।१।
सोरठा:-
कहैं वैष्णव दास, या में कछु संशय नहीं।
पर नारायण पास, बैठक सो पावै सही।१।