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३३३ ॥ श्री जगन्नाथ दास जी ॥

(श्री मंझले महाराज जी, छावनी, अयोध्या)
 

चौपाई:-

हवन कीन हरि नाम उचारा। गुरु गादि सेवा मन धारा।१।

सन्तन की सेवा कछु कीन्हा। या से हरि मोहिं हरि पुर दीन्हा।२।

तीनि बिष्णु के दरशन करिकै। तब फिर गयऊँ प्रेम में भरिकै।३।

परनारायण धाम में जाई। दीन पारषद मोहिं बिठाई।४।

 

दोहा:-

जगन्नाथ कहैं आय जग, भजै राम को नाम।

अन्त समय संशय नहीं, जावै हरि के धाम।१।