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३१९ ॥ श्री शिवनाथ जी ॥


पद:-

जागता है वही जग में जिसे सतगुरु शब्द दीन्हा।१।

धुनी एकतार सुनता है रूप सन्मुख में करि लीन्हा।२।

ध्यान परकाश लय पायो देव मुनि प्रेम सँग कीन्हा।३।

कहैं शिवनाथ सो हरि का जियत निज धाम जो चीन्हा।४।