साईट में खोजें

३१२ ॥ श्री पहलवान दास जी ॥


पद:-

भजन जिसने किया हरि का वही नर तन क फल पाया।

बजा कर नाम का डंका राम सीता को अपनाया।

सदा सन्मुख रहै झाँकी सगुन निर्गुण जो कहलाया।

रमे सब में वही स्वामी उन्ही की सब यह है माया।

दीनता प्रेम से मिलते यही प्रभु को सदा भाया।५।

आप को मेटि जो देवै करैं ता पर तुरत दाया।

सहारे जो रहै हरि के और सब बात बिसराया।

वही सच्चा बहादुर है दास पहलवान गुन गाया।८।