२७८ ॥ श्री मगण जी ॥ चौपाई:-मगण कहैं मुद मंगल ताको। नाम रूप मिलि जावै जाको।१। सो निशि बासर रहै सुखारी। जप हो सन्मुख अवध बिहारी।२।