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२६७ ॥ श्री भगवान दास जी ॥

जारी........

सब लोकन में देय घुमाई। इच्छा जियतै देय नसाई॥

मुद मंगल की देने हारी। धनि धानि जगदम्बा बलिहारी।१०।


सोरठा:-

भगवान दास कह गाय, सतगुरु करि अमृत चखौ।

सूरति शब्द लगाय, जियतै में सब कुछ लखौ॥