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२३२ ॥ श्री ज्वाला नन्द जी ॥


दोहा:-

जो हरि का सुमिरन करैं सोई पहुँचैं पास।

सुमिरन बिन नरकै चलैं होवै सत्यानास।१।

तजैं कामना काम सब सुमिरै तन मन लाय।

राम नाम की धुनि खुलै राम सिया दर्शाय।२।

ध्यान में बहु लीला लखै बरनत नहीं सेराय।

लय में जावैं पहुँचि जब सुधि बुधि जाय भुलाय।३।

जो कोइ यहँ पर जानि ले सोई सूर कहाय।

ज्वाला नन्द कि बिनय यह नाहीं तो पछिताय।४।