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१६७ ॥ श्री लाड़िली जी ॥


अद्धा:-

कोई देखा है हमारा प्यारा मोहन।

मन मोहन बिन कल न परत है बिरहा नल में दहत बदन।

लता पता में चलि सब ढूढ़ैं छिपि कहिं बैठा होगा सजन।

पग चलने को उठत नहीं हैं कैसी करूँ हरि तन मन धन।

प्राण के प्राण मेरे कब मिलिहौ अनुपम छटा लखौंगी दृगन।

श्याम प्रगट ह्वै भेंट्यौ प्रिया को सखा सखी सब ह्वै गे मगन।६।