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१६३ ॥ श्री गोदावरी जी ॥


चौपाई:-

इन्द्रिन दमन करैं जो कोई। ता को पैकरमा शुभ होई।१।

राम नाम को जानै जोई। धाम छेत्र को पावै सोई।२।

द्वारे हरि के पहुँचै जब हीं। द्वारा हरि को निरखै तब हीं।३।


दोहा:-

राम सिया के दरश नित जाको होवैं जान।

जाय अखाड़े में जुटैं पूरा ह्वै पहलवान॥


चौपाई:-

धुनि की ताल रात दिन बाजै। पाँचो चोर अजा संग भाजैं।१।

तब वह शूर सुखी ह्वै जावै। बिजय पत्र जियतै में पावैं।२।

सुर मुनि कहैं वीर सो होवै। राम नाम जपि भय सब खोवै।३।


दोहा:-

मरै बासना सब तबै खुलि जाँय आँखी कान।

गोदावरी कि बिनय यह तब होवै कल्यान॥