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१४४ ॥ श्री शाह जहाँ जी ॥


पद:-

क्या श्याम छैल बाँका मिलता कभी कभी था।

नुपुर बजा के छम छम चलता कभी कभी था।

सुन्दर लता पता में छिपता कभी कभी था।

राधे के संग गुलशन आता कभी कभी था।

चमनों के ऊपर चक्कर करता कभी कभी था।५।

तिरछी दृगों कि चितवन करता कभी कभी था।

मुरली में तान स्वर क्या भरता कभी कभी था।

मुसक्यान से वह तन मन हरता कभी कभी था।८।