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१२९ ॥ श्री बहादुर दास जी ॥


चौपाई:-

नौ इन्द्री साधै जो कोई। पाठ नवाह्नि तासु को होई।

मन को शान्त करै जो कोई। मास परायण तासु को होई।

नाम की धुनी सुनै जो कोई। पाठ अखण्ड तासु को होई।

नित्य पाठ धुनि के अन्तरगत। नाम रूप परकाश सत्य सत।

लीला धाम की आनन्द लूटौ। सुनौ शब्द बन्धन ते छूटौ।५।

इसी से लय में जावै प्रानी। रूप रंग जँह पर नहिं बानी।

कहैं बहादुर दास बिचारी। यह अध्यात्म ज्ञान सुख कारी।७।