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१२० ॥ श्री ज्ञानेश्वर जी ॥


दोहा:-

चारों तन शोधन करै जियति होय भव पार।

ज्ञानेश्वर यह कहत हैं सत्य बचन सुखसार॥


सोरठा:-

सूरति शब्द लगाय चारों बेधन कीजिये।

ऐसा सुलभ उपाय ज्ञानेश्वर कहैं लीजिये॥


पद:-

इक्यावन छिद्र कि हड्डी त्रिकुटी के बांये दिशि जानो।

दो अंगुल की लम्बी टेढ़ी बचन सत्य मम मानो।

बीच के छिद्र में सबै छिद्र मिलिगे झंझरी जिमि मानो।

बीच में ह्वै कर जावै योगी अमर पुरी स्थानो।

महा प्रकाश बनै नहिं बरनत राम रूप ह्वै जानो।५।

र रंकार धुनि होत अखण्डित रोम रोम उठितानो।

शक्तिमान शक्ती हैं सन्मुख सब में जौन समानो।

ज्ञानेश्वर कहैं प्रेम दीनता बिन यह मिलै न ज्ञानो।८।


चौपाई:-

तीनि कोटि जो भूत कहावैं। तिनको हाल तुम्हैं बतलावैं।१।

सतगुण कोटि एक हैं भाई। शान्ति चित्त वे रहैं सदाई।२।

रज गुण कोटि एक हैं जानो। भोजन बसन कि शौक है मानो।३।

तम गुण एक कोटि अभिमानी। मदिरा मांस भखैं अज्ञानी।४।


दोहा:-

ज्ञानेश्वर कहैं मानिये मोरो बचन प्रमान।

सबै कला नीचै अहैं राम नाम के जान॥