॥ माटी खान लीला ॥
जारी........
ता में ह्वै हरि खींचि, लीन्हेव ऊखल जोर करि॥
चौपाई:-
दोनो वृक्ष गिरे अरराई। पुर भर में यह शब्द सुनाई।
वृक्षन ते दुइ सुघर कुमारा। प्रगटे श्याम को रूप निहारा॥
दोहा:-
चरनन में दोनों परे उठिकै अस्तुति कीन।
श्याम चतुर्भुज रूप ह्वै, तब फिर दर्शन दीन॥
अन्तर ध्यान भये दोउ, गये विष्णु के धाम।
नारद श्राप ते छूटिगे, लीला कीन्ही श्याम।१२७।
चौपाई:-
घर घर के नर नारी दौरै। इधर उधर ताकैं जिमि बौरे।
तहँ उपनन्द की नारी आई। निरख्यो श्याम रहे मुसक्याई॥
ऊखल ते छोरयो चट जाई। गोदी में फिर लीन उठाई।
यहाँ यशोमति आँगन आईं। पूछयो हलधर कहाँ कन्हाई॥
हलधर कह्यो भागिगो माई। द्वार ऊखल को कढ़िलाई।
कहन चह्यों जस तुमते माई। तैसे तो आँगन तू आई।१३०।
यशुमति द्वारे को तब दौरी। देखैं श्याम गयो केहि ओरी।
दोहा:-
तब तक श्याम को गोद में, लिये नारि उपनन्द।
यशुमति के ढिग पहुँचिगै, बोली सुनु मति मन्द॥
चौपाई:-
आज देव सब भये सहाई। बचिगे तेरे कुँवर कन्हाई।
चलि कै देख भई जो बाता। निरखि कै जीभ दाबि है दांता।१३२।
दोनो वृक्षन मध्य मुरारी। ऊखल में बांधे बतलारी।
दोहा:-
वृक्ष परे दोनो गिरे, बैठैं तहँ पर श्याम।
नेक दया तेरे नहीं, ऐसी अधम निकाम॥
चौपाई:-
यशुमति सुनि कै अति घबड़ानी। हरि को गोद में लै हरखानी।
गईं ठौर देखन नन्द रानी। हाय हाय करि के चिल्लानी।१३४।
हरि के तात सुनै रिसिऐहैं। कैसे उनको मुख दिखलैहैं।
जो यमुना में वूड़ौ जाई। तो कहँ पावों कुँवर कन्हाई।१३५।
या से अब का करौं उपाई। सुनिये पुर के लोग लुगाई।
पुर के नर नारी संघ जावैं। यशुमति को गृह में लै आवैं।१३६।
नन्द भवन में पहुँचे आई। देखा भीड़ बड़ी तहँ छाई।
हलधर दौड़ि के लपट्यौ जाई। दीन्हेव भेद सबै बतलाई।१३७।
पहुँचे नन्द महरि ढिग जाई। देखैं रोवैं अति बिलखाई।
श्याम को गोद में लीन उठाई। चट हिरदय में लीन लगाई।१३८।
बोले नन्द सुनो तुम रानी। बिन समझे करतीं मन मानी।
ऐसा काम फेरि मत कीजै। सब के सन्मुख सौगंध कीजै।१३९।
दोहा:-
यशुमति सबके सामने, कीन्ह त्रिबाचा जान।
अब कबहूँ कछु श्याम को, नहीं कहौं सच मान॥
चौपाई:-
बोले नन्द दान अब कीजै। पुर नर नारिन को खुश कीजै।
सब की भाग्य से कुँवर कन्हाई। बचिगे मानहुँ श्याम की माई।१४१।
पट धन यशुमति आँगन लाईं। धरि दीन्हेव बोलीं हर्षाई।
जा के मन में जो कुछ भावै। सो लै लेय न मन सकुचावै।१४२।
पट धन नर नारी सब लेवैं। यशुमति नन्द को आशिष देवैं।
हलधर श्याम यह दोनों भाई। खुशी रहें सब के सुखदाई।१४३।
असि कहि के सब लोग लोगाई। अपने अपने गृह में जाई।
दोहा:-
खींचि शोक सब को लियो, क्षण ही में हरि जान।
पुर नर नारी मगन मन, मातु पिता सुख मान॥
॥ श्री दुलरी लीला प्रारम्भ: ॥
जारी........