११० ॥ श्री हुलसी माता जी ॥
पद:-
दोनों कर पकड़ि लेत बेचन नहिं जान देत ऐसे हरि हैं
सचेत कैसी करूँ मैया।
ग्वाल बाल संघ सोहैं बीधिन में बाट जोहैं देखत ही खात सोहैं
कोई नहि लुटैया।
निकसै कछु दूरि जांय पीछे से आवैं धाय पकरैं कटि कसि के हाय
छोड़ैं नहि दैया।
ग्वालन से कहैं भाय खाओ मन भरि अघाय कैसे यह निकसि जाय
दान नहि देवैया।
शिर से मेटुकी उतारि माखन दधि खात झारि धोवत फिर हाथ बारि
फेंकि के मलैया।५।
एड़ुरी यमुना में डारि देवैं ए सुत तुम्हारि इन से मैं गई हारि
करते अति ढिठैया।
चोली को बन्द तूरि सारी नोचैं मरोरि बोलैं हम हाथ जोरि
तबहूँ नहि मनैया।
मुख पर हंसि हाथ देत बोलन नहिं बात देत बिगड़ी है इनकी नेत
लाज नहि रखैया।
छिन ही में बाढ़ि जात जादू क्या सिखे मात साढ़ी ऊपर की खात
जूठ दधि करैया।
आँखैं दोउ मूंदि लेत ग्वालन को टेरि देत चहुँ दिशि ते घेरि लेत
मेटुकी के फोरैया।१०।
दोनों कर तानि देत आगे नहिं जान देत बोलैं तो गारि देत
वंशी गहि मरैया।
पीछे से गुदगुदाय देवै मेटुकी गिराय चलती नहि कछु उपाय
कोई नहि सुनैया।
चाटैं सब दही धाय धरनी में मूंह लगाय छीपैं फिर तन पै आय
हंसी के करैया।
मेटुकी लै भागी जात भाजत में खात जात संघै सब ग्वाल जात
पकरत सब भैया।
संघ में सब बैठि खात खावैं हंसि हंसि बतात जावैं ढिग मारैं लात
भागौं फिर कन्हैया।१५।
ग्वाल बाल हंसै ठाढ़ सब के सब बड़े राढ़ ऐसे दुखदेत गाढ़
रोये नहि चुकैया।
आधा दधि लेत खाय यमुना जल दे मिलाय धक्का फिर दें लगाय
मौन नहिं बोलैया।
दोना सब लेंय हाथ जावैं बनि अति अनाथ चरनन पर धरत माथ
दया उर अवैया।
पीवैं सब ग्वाल आंप दोना भरि भरि सड़ाप लेवैं फिरि नाप नाप
पेट नहि भरैया।
देखैं तहँ दौरि जांय रोवैं आँसू बहाय भूखन से प्राण जांय
दया करो मैया।२०।
रोटी नहि मातु दीन घर ते मोहिं काढ़ि दीन ग्वाल बाल संघ लीन
भीख के मंगैया।
गृह गृह में जांव माय मांगव बारी लगाय यमुना जल पिअव पाय
ग्वालन नहिं छोड़ैया।
गौवें सब की चराय खरचा कछु जांव पाय ग्वालन फिर बसन लाय
देहौं मम मैया।
छोड़ैं नहि बृज बिहार ग्वालन को हम दुलार फंसिगे सब प्रेम जाल
हमरे संघ खेलैया।
दाया तन जिनके आय देहैं ते हमैं लाय ऐसै नित पाय पाय
गुजर करब मैया।२५।
जारी........