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९० ॥ श्री कामदेव जी ॥


गारी:-

सुमन धनुष औ सुमन बाण कर में लै घूमौं धाई जी।

ताकि के जेहि पर लक्ष करौं मैं सो उतान गिरि जाई जी।

पशु पक्षिन की कौन बात है सुर मुनि गोता खाई जी।

सुधि बुधि ऊँच नीच की छूटै ज्ञान कि शान सेराई जी।

करौं परिक्षा अभिमानिन की बनैं ब्रह्म जे आई जी।५।

तिन का शिर नीचे पग ऊपर करि टांगौ हर्षाई जी।

काम कहैं यह काम हमारा सत्य तुम्हैं बतलाई जी।

राम नाम में जे जन तत्पर तिनकी बलि बलि जाई जी।८।