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८७ ॥ श्री बिजय जी ॥


दोहा:-

बिना नाम जाने सुनो होय न कोई पार।

कलि में ठीक उपाय यह और बात बेकार।१।

बिजय कहैं हरि नाम में तन मन प्रेम लगाव।

जियत सुफल तन कीजिये मरि हरि के ढिग जाव।२।