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७६ ॥ श्री दमयन्ती जी॥


पद:-

लचकि लचकि चलत चाल नैनन की सैन मार साँवरो कन्हाई।

मोर मुकुट शिर पर राजै कानन कुण्डल बिराजै मुरली दोउ करन माहिं अधर धरि बजाई।

पीताम्बर कटि में काछे अंग बसन आछे आछे नूपुर दोउ पगन बांधे नृत्य करत धाई।

सखा सखी आगे पीछे बाजा बहु बिधि के बाजैं राधे श्याम मध्य सोहैं सुन्दर छबि छाई। दौरि झपटि सखा सखिन प्रेम करत लपटि लपटि राधे के पास जाय गले बाँह लाई।५।

वंशी को काँख दाबि दोनो कर ताल देत गावत क्या मधुर तान सबन को रिझाई।

सुर मुनि सब देखैं आय हरि की लीला को भाय शारद औ शेष मौन और को बताई।

दुखिया दमयन्ती नाथ दीनन के दीना नाथ करियो मो को सनाथ चरन शरन आई।८।