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६२ ॥ श्री गिरिवर दास जी ॥


चौपाई:-

सरस्वती माता की झांकी। हर दम सन्मुख रहत है वांकी।

विद्या बुद्धि को देतीं माता। सुर मुनि नर सब में बिख्याता।

राम नाम जपतीं निशि बासर। राम सिया सोहै समुहें पर।

भूषन बसन बदन की शोभा। कोटिन काम लखत मन छोभा।

केकी के ऊपर असवारी। निरखत छबि आनन्द अति भारी।५।

गौर वर्ण कर आठ सुहावन। दुइ कर वीणा मधुर बजावन।

हरि जस गान में तन मन वारे। सुर मुनि सुनि अति होत सुखारे।

गिरिबर दास है नाम मेरा। तन मन प्रेम ते मातु को चेरा।८।