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४७ ॥ श्री बलदेव जी ॥


दोहा:-

राम नाम में प्रीति हो खुलै राम का नाम।

अन्तराय नहि होय फिरि, सुनिये आठों याम।१।

दर्शन ते मन मगन अति, सुन्दर रूप अनूप।

देखि छकौ छबि श्याम की, जो सब के हैं भूप।२।