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३५ ॥ श्री मुकुन्द जी ॥


दोहा:-

मुकुन्द कुन्द सम तब खिलै, जब सुमिरै हरि नाम।

नहीं तो चक्कर काटिहैं, मिलै न ठीक मुकाम।१।

सुमिरन ते सब कछु लहैं, रूप व लीला धाम।

मुकुन्द सत्य यह कहत हैं, भजौ सदा हरि नाम।२।


पद:-

राम सीता राम सीता राम सीता मम प्रणाम।

श्याम राधे श्याम राधे श्याम राधे मम प्रणाम।

रमा बिष्णु रमा बिष्णु रमा बिष्णु मम प्रणाम।

श्याम श्यामा श्याम श्यामा श्याम श्यामा मम प्रणाम।

उमा शंकर उमा शंकर उमा शंकर मम प्रणाम।५।

गणेश शारद गणेश शारद गणेश शारद मम प्रणाम।

राम सीता कृष्ण राधे रमा बिष्णु मम प्रणाम।

श्याम श्यामा उमा शंकर गणेश शारद मम प्रणाम।८।