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१८ ॥ श्री रसखान जी ॥


शेर:-

कहते रसखान हैं मुरशिद से मिलो ढूँढ़ अबी।

राम के भजन बिन दोज़ख में जाय पड़िहैं सबी।१।

राम औ कृष्ण विष्णु कहते हैं उन्हीं को नबी।

जान लेवैंगे है यह सच्चा मेरा दास कबी।२।

काम जाहिर में करो वातिन जपो अजपा जबी।

प्रेम एकतार हो तन मन कि सुधि भूलोगे तबी।३।

धुनी जारी हो रोम रोम वसै नैनों छवी।

जान लो मुझ को तो अपनाय लिया मेरे नवी।४।


दोहा:-

सब मन की जब वासना, जरैं कहैं रसखान।

तब हर दम सन्मुख रहे, झांकी कृपानिधान॥


गज़ल:-

दिखा अनोखी छवी प्रभू ने यह तन मन मेरा लुभा लिया है।१।

अधर पै मुरली को धरि के हरि फिर मधुर मधुर धुनि बजा दिया है।२।

करी है किरपा दया के सागर ने जगत विषय सब हटा दिया है।३।

रसखान प्राणों के प्राण हरि को हम अपने दिल में बसा लिया है।४।