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२५४ ॥ श्री स्वामी रामानन्द जी ॥


दोहा:-

हरि हरिभक्तन का चरित, है अति सुख की खानि ।

रामानन्द यह कहत हैं, लेव वचन मम मानि ॥१॥

पढ़ै सुनै जो ग्रन्थ यह, तन मन प्रेम लगाय ।

हर्ष शोक की शान्ति हो, भवसागर तरि जाय ॥२॥

॥ इति श्री राम कृष्ण लीला भक्तामृत चरितावली सम्पूर्णम॥

११-७-१९४५