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२५१ ॥ श्री हनुमान जी ॥

जारी........

आखैं खोलीं धाय हरि, तन मन भक्त सनेह ॥२६॥

श्री गजानन जी लिख्यौ, साठ मिन्ट में पांच ।

राम नाम परताप ते, वचन मानिये सांच ॥२७॥

एक गई शिवधाम को, दूसरि शेष के धाम ।

तीसरि स्वर्ग को इन्द्र ग्रह, चौथी विष्णु के धाम ॥२८॥

पँचई चतुरानन भवन, भयो बहुत सन्मान ।

ऐसेहि पाँचो बटि गईं, हरि इच्छा से जान ॥२९॥

सबै देव मुनि गे चले, अपने अपने धाम ।

सबै फूल तब हम कियो, एक ठौरी एक ठाम ॥३०॥

श्री सरयू में जायकर, दीन छोड़ि मंझधार ।

गये बूड़ि तुरतै सबै, मानो वचन हमार ॥३१॥

मणी तीन जो थीं चढ़ी, श्री शिव दीन बताय ।

वृक्ष लगाया गया जब, सो सब दीन लिखाय ॥३२॥

मानसिंह मिर्जा रहे, गढ़ चित्तौर के जान ।

संतन में अति प्रेम था, साँची लीजै मान ॥३३॥

बैशाख शुक्ल नवमी रही, आये अवध मँझार ।

यही भूमि को देखि कै, मिल्यौ उन्हैं सुखसार ॥३४॥

राम सिया के दरस भे, गोस्वामी के पास ।

तन मन प्रेम में पगि गये, पूरन भा विश्वास ॥३५॥

शिष्य भये तुरतै सुनौ, दीनों काम लगाय ।

साँचे पत्थर की फरश, तहाँ दीन बनवाय ॥३६॥

सिंहासन पर छत्र तहँ, दीन लगाय सुजान ।

तीनों मणि पधरी तहाँ, पूजा होवै जान ॥३७॥

देव मुनी बहु आय के, फेरी नित करि जाहिं ।

तुलसी चौरा धन्य है, अवध पुरी के माहिं ॥३८॥

राम धाम पश्चिम दिशा, जन्म भूमि जेहि नाम ।

उत्तर दिशि सरयू बहैं, मानौ आठों याम ॥३९॥

योगानन्द के शिष्य थे, सुनिये भोलानन्द ।

तिनके चेला एक थे, योगी ज्वालानन्द ॥४०॥

गोस्वामी आये यहाँ, सब उन कहेउ हवाल ।

आप यहाँ रहिये मुनी, यह भूमिका विशाल ॥४१॥

करि प्रणाम फिरि चलि दियो, सौ पग उत्तर जान ।

कमलासन से बैठि कै, कीन्हों हरि को ध्यान ॥४२॥

योग अग्नि परगट करी, दीन्हों देह जलाय ।

भस्म क लाग्यौ पता नहिं, लैगे पवन उड़ाय ॥४३॥

गोस्वामी ताकत रहे, चढ़ि विमान सो जाय ।

यह लीला वहँ पर भई, सिध्द भूमिका आय ॥४४॥

गोस्वामी परसन्न अति, प्रति दिन बढ़ै अनन्द ।

राम श्याम सिय छटा लखि, चित चरनन मकरन्द ॥४५॥

तन मन प्रेम से होत है, जहां राम गुन गान ।

तहँ पर हम पहुँचैं तुरत, मानौ वचन प्रमान ॥४६॥

प्रेमी बहुत हैं जक्त में, बहुत जगह नित होय ।

सबै जगह बहु रूप धरि, हम पहुँचैं तब होय ॥४७॥

राम नाम माहात्म कछु, जानि जाय जो कोय ।

सूरति लागै शब्द में, रोम रोम ध्वनि होय ॥४८॥

सन्मुख झांकी अमित छवि, संस्कार जेहि जौन ।

सियारमन लक्ष्मीरमन, राधे रमन हैं जौन ॥४९॥

तीनो प्रभु एकै अहैं, सत्य कहैं हनुमान ।

जो या में संशय करै, ता को नहि कल्यान ॥५०॥