२४८ ॥ श्री कबीरदास जी ॥
जारी........
शान्ति से बैठ रहन मोहिं दीजै। जाय कार्य अपना सब कीजै ॥४॥
बारह वर्ष बीति जब गयऊ। निकसे नहीं पुष्ट प्रण ठयऊ ॥५॥
दोहा:-
तबै व्यास सब सुर मुनिन, विनय कीन सिर नाय ।
सब मिलिकर किरपा करौ, कार्य सुफल ह्वै जाय ॥१॥
आये सब सुर मुनि सहित, श्री विष्णु भगवान ।
मय पत्नी के व्यास जी, चरनन में लपटान ॥२॥
सबै देव मुनि धैर्य दे, कह्यौ शान्त ह्वै जाव ।
घबड़ाने से ज्ञान का, बदलै सुनो स्वभाव ॥३॥
श्री विष्णु भगवान जी, बोले सुनो कुमार ।
गर्भ में कोइ जानी नहीं, कैसे होय प्रचार ॥४॥
बाहेर हरि सुमिरन करो, मिलै तुम्हैं सुखसार ।
मम माया व्यापै नहीं, मानो वचन हमार ॥५॥
सुनत वचन तुरतै प्रगट, भये मुनी महराज ।
देव मुनिन जै जै करी, भयो सुक्ख दुख भाज ॥६॥
सबै देव मुनि गे चले, अपने अपने धाम ।
तब शुकदेव चले तुरत, कानन को लै नाम ॥७॥
नार को गले लपेटि कै, व्यास को कीन प्रणाम ।
हम से अब बोल्यौ नहीं, भयो तुम्हारा काम ॥८॥
चौपाई:-
अस कहि जंगल तुरत सिधारे। व्यास खड़े तहँ रहे विचारे ।
सब वृक्षन तहँ धुनी समाई। हमही तो शुकदेव हैं भाई ॥९॥
व्यास क मोह हर्यौ भगवाना। प्रगट भयो तब तुरतै ज्ञाना ।
धन्य धन्य जै कृपानिधाना। तुमरी गति कोई नहिं जाना ॥१०॥
दोहा:-
बारह वर्ष के रहत हैं, सदा एक रस जान ।
ऐसा नाम प्रताप है, जानहिं पुरुष महान ॥१॥
चौपाई:-
श्री शुकदेव जन्म हम गावा।
कहौ सुन्यौ तुमरे मन भावा ॥१॥
दोहा:-
सुर मुनि सब परसन्न हैं, सुनिये तुमसे तात ।
ताते हमहूँ कहत हैं, तन मन से सब बात ॥१॥
चौपाई:-
अब कैलाश क सुनो हवाला। फाटक तहँ इक बना विशाला ॥१॥
उत्तर मुख है फाटक भाई। सांची तुमसे कहौं सुनाई ॥२॥
बैठ तहां गज वदन विशाला। हरि मर्दन कालहु के काला ॥३॥
बिना हुक्म उनके कैलाशा। जाय न पावै सुनो वताशा ॥४॥
ऐसे शूरवीर रणधीरा। जिनकी पूजन हो सब तीरा ॥५॥
हैं अनादि कोइ भेद न पावै। सब देवन में प्रथम पुजावै ॥६॥
दोहा:-
राम नाम सुमिरन करत, बैठै तहां हमेश ।
बिन आज्ञा गज वदन की, कहो होय को पेश ॥१॥
एक दन्त सोरह भुजा, भाल सिंदूर विशाल ।
गौर वदन सुन्दर सदन, गज मुक्तन उर माल ॥२॥
शंख चक्र गदा पद्म है, तीर धनुष औ ढाल ।
भाला खाँडा पटा है, औ किरपान विशाल ॥३॥
फरसा बर्छी साँगि है, गुर्ज विचित्र कटार ।
एक एक कर में लिये, मानो सब हथियार ॥४॥
चौपाई:-
किहेन दरस उनके हम जाई । बार बार चरनन सिर नाई ॥१॥
आशिष दै के पूछ्यौ बाता । कहौ कबीर कहाँ तुम ताता ॥२॥
तब हम सब विरतान्त सुनायन । शंकर के दरशन को आयन ॥३॥
तुरत हुकुम मोहि दिन्हेउ भाई । कीन प्रवेश शम्भु गुण गाई ॥४॥
वम भूतेश्वर शम्भु दयालू । संघारन कर्त्ता प्रतिपालू ॥५॥
सुनत वचन मोहिं शम्भु बुलाये । चरन पर्यौ कर गहि बैठाये ॥६॥
जारी........