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१८० ॥ श्री नासिकेत जी ॥


दोहा:-

कहनी तो अति सुलभ है, जिह्वा दीन चलाय ।

बिना गुरू के ना मिलै, कीजै कोटि उपाय ॥१॥

बिन कुंजी के ना खुलै, ताला मुरचा खाय ।

सत्य वचन मैं कहत हौं, गुरू से मिलिये धाय ॥२॥