साईट में खोजें

१७७ ॥ श्री महात्मा मनभावनदास जी ॥


पद:-

श्री गीता श्री रामायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥१॥

ज्ञान वैराग्य मुद दायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥२॥

अक्षयवट कल्पवृक्ष पायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥३॥

कामधेनु पारसमनि पायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥४॥

दो अनमोले रतन पायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥५॥

राम औ कृष्ण गुन गायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥६॥

भेद दोनों में नहिं पायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥७॥

हिये के नैन हम पायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥८॥

जगत परचार करवायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥९॥

सुरन जो मुनिन मन भायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥१०॥

है इसका झंडा फहरायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥११॥

जहां देखो तहां गायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥१२॥

पाप पढ़ि सुनि के नसवायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥१३॥

सदा तन मन से गुन गायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥१४॥

लिखेनि औ लिखि के बँटवायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥१५॥

भेद यह गुरू से पायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥१६॥

है जिनका नाम नारायण सदा कहिये सदा सुनिये ॥१७॥

मंत्र षट अक्षर सुखदायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥१८॥

किहेन अभ्यास तब पायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥१९॥

पढ़ेन औ पढ़ के समुझायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥२०॥

धुनी जब नाम की पायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥२१॥

रोम प्रति रोम गोहरायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥२२॥

दरस हर दमहिं तब पायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥२३॥

गुरू के चरन चित लायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥२४॥

धयान जप लय दशा पायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥२५॥

नहीं कछु बाँकि सब गायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥२६॥

मुक्ती औ भक्ती को पायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥२७॥

सत्य ही सत्य बतलायन सदा कहिये सदा सुनिये ॥२८॥