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१६१ ॥ श्री कुन्ती जी ॥


गजल:-

नाम परताप जाने बिन तुम्हारी हो महा ख्वारी ॥१॥

बने काहिल हो क्यों बैठे कि तुम हो वेश्या सुकुमारी ॥२॥

खेल हांसी में भूले हो करौ गलती बहुत भारी ॥३॥

पकरि यमदूत ले चलिहैं कहहु तब कौन रखवारी ॥४॥

भजो निसि दिन मदन मोहन सबों के प्राण गिरिधारी ॥५॥

अर्ज सब से करै कुन्ती मिलैगी ऐसी नहीं बारी ॥६॥