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१२९ ॥ श्री हरिश्चन्द्र जी ॥


दोहा:-

सत्य न छोड़ैं आप जग, चहै तौन दुख होय ।

वचन कहै पलटै नहीं, राम करैं सो होय ॥१॥

मैं पत्नी औ पुत्र के, सह्यो दुख अति घोर ।

तब किरपानिधि कृपा करि, दीन पास ही ठौर ॥२॥

या से जग में आय के, सांचा ह्वै कर खेल ।

तब तनकौ संशय नहीं, होय राम सों मेल ॥३॥