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७३० ॥ अनन्त श्री स्वामी बाबा गोपाल दास जी ॥ (५)

पद:-

स्वांसा समय अनमोल तन सतगुरु से सुमिरन जानिये।

जुट जाओ भक्तों प्रेम से जियतै में सब सुख खानिये।

ध्यान धुनि परकाश लै षट रूप सन्मुख तानिये।

सुर मुनि मिलैं आशीष दें राखा तु निज कुल कानिये।

अमृत पिओ अनहद सुनो क्या बिमल गति चटकानिये।५।

 

नागिन जगै चक्कर चलैं सब कमल खिलि उलटानिये।

इन्द्रिन दमन कर लो जियत मानो मेरी यह बानिये।

गोपाल दास कहें अमर हो निज तन में घूम के छानिये।८।