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७३० ॥ अनन्त श्री स्वामी बाबा गोपाल दास जी ॥ (२)

पद:-

जानो राम नाम सतसंग।

सतगुरु से जप की बिधि लीजै, तब लागै यह रंग।

चौदह सहस चोर तन भीतर सारे होंय अपंग।

निर्भय औ निर्बैर जियत हो कौन करै फिर तंग।

हर दम रक्षक शिव त्रिशूल लिये बांये दिशि बजरंग।५।

 

ध्यान धुनी परकाश दशा लय जहं सुधि बुधि हो भंग।

सियाराम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख निरखौ अंग।

अन्त राय नेकौ नहिं होवै तन मन भरौ उमंग।

अमृत पिओ सुनौ घट अनहद सुर मुनि लेंय उछंग।

नागिन जगै चक्र सब घूमैं कमलन उड़ै तरंग।१०।

 

सब लोकन की फेरी करि कै जीति लेओ जग जंग।

कहैं गोपाल दास तन छूटै बैठो हरि के संग।१२।