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५३१॥ श्री प्रेमा माई जी ॥

पद:-

चित चोर को बांधो पकरि प्रेम की डोरी।

तव पहुँचि जाव हरखाय वतन की ओरी।

सतगुरु करि जप विधि जान त्रिगुण दो तोरी।

तन मन जुरि होवै एक नाम रंग बोरी।

धुनि ध्यान प्रकाश समाधि लेय सुधि छोरी।५।

 

शुभ अशुभ की होवै नाश जरै जिमि होरी।

अनहद धुनि घट में बजै सुनो शुभ ठौरी।

सुर मुनि सब आवैं लपटि मिलैं झकझोरी।

सन्मुख दें श्यामा श्याम छटा छवि जोरी।

लो शान्ति दीनता धारि त्यागि छल चोरी।१०।

 

जियतै में सब लखि लेव भर्म घट फोरी।

तन तजि बैठो साकेत सुनो सब मोरी।१२।