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५२ ॥ श्री रैदास जी ॥

जारी........

अक्षर से निःअक्षर होता निःअक्षर अक्षर लाला सुमि० ॥४६॥

है रकार का खेल अगम अति जपैं सदा शिव मंतवाला सुमि० ॥४७॥

ब्रह्मा सृष्टि रचैं यहि के बल है अनादि का यह माला सुमि० ॥४८॥

जपैं आप को आप आप हरि करैं जगत को प्रतिपाला सुमि० ॥४९॥

आप जगत औ भगत आप हैं आपै सबै वस्तु लाला सुमि० ॥५०॥

करौं बैर अब किस से कहिये सबै आप जब हैं लाला सुमि० ॥५१॥

अपनै आप को चिन्हि लेव तब अपनै आप बनौ लाला सुमि० ॥५२॥

नाहीं तो धोखा खाओ तुम बहुत बुरैं होंवै हाला सुमि० ॥५३॥

दीन बनो छोड़ो दुतिया को प्रेम मगन हो मतवाला सुमि० ॥५४॥

हरि किरपानिधि द्रवहिं दीन पर सदा कि हरि की यह चाला सुमि० ॥५५॥

भीतर बाहर ऐकै देखो पिओ नाम अमृत प्याला सुमि० ॥५६॥

सुर मुनि सब को यहि नशा यक समुझाइत तुमको लाला सुमि० ॥५७॥

आँखी कान खुलै तब ही जब मन स्थिर होवै साला सुमि० ॥५८॥

छिन पल कल नहिं लेन देत यह बतलावत अपनी चाला सुमि०॥५९॥

यहि के काटे मरि मरि जीवै आवैं जावैं हो लाला सुमि०॥६०॥

सत्संगति संतन की करिके काटो तन मन के जाला सुमि०॥६१॥

समय बिना नहिं मिलै वस्तु कोइ सबै युगन की यह चाला सुमि०॥६२॥

आवै समय देर नहिं लागै काहे घबड़ाते लाला सुमि०॥६३॥

धीरज धरो काम सब होइ है मानो वचन मेरे लाला सुमि० ॥६४॥

कहैं रैदास दया सतगुरु की मिटै करम गति जो भाला सुमि०॥६५॥


कजरी:-

बाजा बाजै घट में अनहद धुनि सुनि मगन भये रैदास ॥१॥

श्याम सलोने सन्मुख हर दम तन मन चित्त हुलास ॥२॥

रा रा कार की धुनि होती है रोम रोम ते खास ॥३॥

शून्य भवन में लय जब होवै सुधि बुधि सब हो नाश ॥४॥

देखौ नाना चरित कहौं क्या अमित भानु परकाश ॥५॥

श्री सतगुरु किरपा ते पहुँच्यो राम ब्रह्म के पास ॥६॥


चौपाई:-

हरि सुमिरन बिन सोहैं कैसे। कागा का रंग करिया जैसे ॥१॥

आवै जावै दुख बहु पावै। हरि सुमिरन बिनु मुक्ति न पावै ॥२॥


दोहा:-

राम नाम सुमिरन करैं देव दनुज मुनि नाग ।

जल चर थल चर गगन चर गरुड़ भुशुण्डी काग ॥१॥


सोरठा:-

कहैं रैदास विचारि राम नाम सुखसार है ।

गुरु किरपा उर धारि सो भव सागर पार है ॥१॥