४ ॥ श्री राधा जी ॥
गज़ल:-
हमारे नैन के तारे प्रभू के अति दुलारे हैं ॥१॥
सखौं में सब से हैं न्यारे सबों के प्रान प्यारे हैं ॥२॥
प्रेम में तन मन धन वारे सदा हरि के सहारे हैं ॥३॥
भद्रसेन नाम जिनका रे सभी हँसि हँसि पुकारे हैं ॥४॥
बसन सुन्दर बदन मारे हमारे कार्य सारे हैं ॥५॥
दीनता धैर्य को धारे तुम्हारे मित्र वारे हैं ॥६॥
दोहा:-
गुरू कहत हैं कौन को, जाको गुरू हैं नाम ॥७॥
नाम रूप लीला ललित, देखैं सुन्दर धाम ॥८॥
शब्द सनेही गुरु वही, जानै अन्तर नाम ॥९॥
ऐसे गुरु को कीजिये, बार बार परनाम ॥१०॥