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४६८ ॥ अनन्त श्री स्वामी सतगुरु नागा ॥

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निन्दा करने हार को मिलता आधा पाप।

राम दास नागा कहैं, तपिहै तीनों ताप॥

आँखिन देखी मानना, कानन सुनी न मान।

राम दास नागा कहैं, तबहूँ धरो न ध्यान॥

पढ़ि सुनि कर चेला करैं, बाधा पकड़ै धाय।

राम दास नागा कहैं, नीचे देय गिराय॥

मन तो थिर थिर नाचता, देत फिरत व्याख्यान।

राम दास नागा कहैं, अन्त गहैं यम कान।५०।

 

सतगुरु बनि चेला करत, जानि न पायो ठौर।

राम दास नागा कहैं, होंय काल का कौर॥

नेम टेम को छोड़ कै, साधक होवै क्रूर।

राम दास नागा कहैं, माया झोंकै धूर॥

जग की ऐश आराम को, साधक तजै सो सूर।

राम दास नागा कहैं, पकड़ सकै नहिं हूर॥

लुच्चा चहुँ दिश घेर के, गुच्चा रहे लगाय।

राम दास नागा कहैं, टुच्चा दिहिन बनाय॥

मौत और भगवान पर, हर दम राखै ख्याल।

राम दास नागा कहैं, सो होवै मतवाल॥

 

जल भोजन हलका करे, साधक सो बन जाय।

राम दास नागा कहैं, शुद्ध धान्य सुख दाय॥

साधक बहुत न बोलही, बहुत चलै नहिं चाल।

राम दास नागा कहैं, नाम पै राखै ख्याल॥

निज तन ते दुख किसी को, साधक देवै नाँहि।

राम दास नागा कहैं, जियतै भव तरि जाँहि॥

साधक सबके कटु बचन सहै करै नहिं क्रोध।

राम दास नागा कहैं, तब हो पूरा बोध॥

साधक सच्चा है वही निज को समुझै खाक।

राम दास नागा कहैं, तब होवै वह पाक।६०।

 

साधक को मारै कोई, वाके जोरे हाथ।

राम दास नागा कहैं, हरि परसैं कर माथ॥

साधक पर कसनी परै नेकहु नहिं घबराय।

राम दास नागा कहैं,आगे बढ़ता जाय॥

जग में जितने दास भे, सेवा के बल जान।

राम दास नागा कहैं, यही ठीक परमान॥

सतगुरु थोड़े जगत में, शिष्यउ थोड़े जान।

राम दास नागा कहैं,सत्य बचन मम मान॥

मन काबू कीन्हे बिना, तीर्थ गये का होय।

राम दास नागा कहैं,रही बासना रोय।६५।

 

सब मन की नारी बनीं, कहँ लग पूरैं आस।

राम दास नागा कहैं, फँसि भा सत्यानाश॥

साधक नाम के संग रहै, साधक संग रहैं राम।

राम दास नागा कहैं, जियत होंय निष्काम॥

बिन्दू सीता जी भईं, रेफ़ राम जी जान।

राम दास नागा कहैं, जो सर्वत्र समान॥

राम राम के दास के, बांचे सुनै चरित्र।

राम दास नागा कहैं, सो होय जाय पवित्र॥

परमारथ परस्वार्थ में, तन मन देय लगाय।

राम दास नागा कहैं, मौनी तौन कहाय।७०।

 

तरुण अवस्था होय जो, साधक रहै अकेल।

राम दास नागा कहैं, माया लेत सकेल॥

तन से शुभ कारज करे, मन से सुमिरे नाम।

राम दास नागा कहैं, जावैं हरि के धाम॥

जारी........