४६८ ॥ अनन्त श्री स्वामी सतगुरु नागा ॥(६)
निरभय पद राम भजन से हो, निरभय पद।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो, बैठो ठीक जतन से हो निरभय पद।१।
सतो गुणी भोजन औ बस्तर, तब बचि जावो पतन से हो निरभय पद।
राम दास नागा कहैं भगतों, जियते मेल वतन से हो निरभय पद।२।