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४५१ ॥ श्री अरिष्ट शाह जी ॥

पद:-

जिस समय भगवान ने रचना करी इस सृष्टि की।

उस समय निज तन ते अगणित अंस प्रगटे बृष्टि की।

कौन बरनन कर सकै उस सगुन निर्गुन इष्ट की।

कितने लगे सुमिरन में हैं कितनो कि बुद्धी भृष्ट की।

कर्म जिनके जैसे हैं वैसे ही उनकी दृष्टि की।

प्रेम भाव से पार हो यह बिनय शाह अरिष्ट की।६।