४२१ ॥ श्री मीरा जी ॥
(शिष्य श्री रैदास जी)
पद:-
श्री रैदास गुरु मोहिं उपदेश दै के
जियति में तन मन स्वच्छ कर दीन है।
रोम रोम एक तार धुनि होत ररंकार
ध्यान परकाश पाय लय का सुख लीन है।
अनहद घट बाजै सुर मुनि मिलैं गाजै
सुधा नित पायो झरि लाग शुभ झीन है।
विष भयो अमी आम नाग भयो सालिग राम
नाना दुःख सुःख भये जिमि जल मीन है।
गाय नाचि खेल श्याम संग प्रेम भरा अंग कर्म
गुण चोर भये शान्ति जैसे पीन है।५।
करुणानिधान सब जीवन के जान
मेरे सन्मुख छटा छवि वसुयाम कीन है।
वरनि श्रृंगार शेष शारद गये हैं हारि
इनके समान और कौन परवीन है।
सूरति अटक जाय नाम संघ जाकी भाय
मीरा कहैं तवन पावै निज धाम चीन्ह है।८।