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३६३ ॥ श्री हिम्मत शाह जी ॥

(शाहजहाँ पुर)

 

पद:-

करो सतगुरु मिलै सुख सार नहीं तो नर तन बृथा।

 

शेर:-

ध्यान धुनि नूर समाधी क सुक्ख कैसा है।

बनता देखत ही कहत बनत नहिं ऐसा है॥

 

रहै तन मन मगन निशिवार नहीं तो नर तन बृथा।२।

 

शेर:-

साज अनहद तो मधुर मधुर हर समय बाजै।

अमृत पीने को मिलै देव मुनि सन्मुख गाजै॥

 

करैं तारी बजाय बलिहार नहीं तो नर तन बृथा।३।

 

शेर:-

जाग कुण्डलिनी मातु चक्र षट नचा डालै।

कमल सातों को उलटि एक दम फुला डालै॥

 

मिलै खुशबू बड़ी मजेदार नहीं तो नर तन बृथा।४।

 

शेर:-

शम्भु गिरिजा कि छटा हर समय सन्मुख होवै।

फ़ौज असुरन कि निकसि भागि जाय औ रोवै॥

 

फिर कबहूँ करै नहिं वार नहीं तो नर तन बृथा।५।

 

शेर:-

अन्त में राम धाम तुम को शिव पठावैंगे।

फेरि काहे को भला गर्भ में झुलावैंगे॥

 

लिखा बिधि का है मेटन हार नहीं तो नर तन बृथा।६।

 

शेर:-

कामना त्यागि भजन किसी देव का कीजै।

मुक्ति औ भक्ति का बरदान सभी दें लीजै॥

 

कहैं हिम्मत न बैठो हार नहीं तो नर तन बृथा।७।