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३१३ ॥ श्री बचावन शाही जी ॥

पद:-

भक्तों तजो त्रिगुन का खेल।

भूत भविष्य औ बर्तमान कहि करत यहाँ हौ मेल।

वाह वाह की कठिन है साँकरि देहैं तुमको बेल।

जानि अजान बनौ मति भाखौ नाही तो हो फेल।

या में सार नहीं हो हासिल महा कठिन भव जेल।५।

 

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो दुख सुख सम लो झेल।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि लेहु खजाना रेल।

सुर मुनि मिलैं सुनौ घट अनहद अमृत पियौ सकेल।

सिया राधिका कमला नित शिर मलैं सुगन्धित तेल।

रा़म श्याम नारायण सन्मुख तन तजि निज पुर पेल।१०।