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३०६ ॥ श्री ताकन शाह जी ॥(३)

सतगुरु किया तन मन मगन हरि नाम रंग माते हुए।

अमृत छकैं अनहद सुनै सुर मुनि से बतलाते हुए।

परकाश ध्यान समाधि सन्मुख रूप छबि छाते हुए।

निर्बैर निर्भय घूमते हरि के चरित गाते हुए।

भागे असुर सब ला पाता आपस में पछिताते हुए।

ताकन कहैं ते धन्य निज पुर बास चलि पाते हुए।६।