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३०४॥ श्री महंगू धोबी जी ॥

(अपढ़)

 

  दोहा:-

मन जब तक साधू नहीं तन साधू बेकार।

मन जब साधू ह्वै गयो दोनों दिशि जैकार॥

मन को नाम के रंग रंगै तब होवै भवपार।

केवल कपड़े के रंगे मिलत नहीं सुखसार॥

मन मानी जो कोइ करै वाको काम है फीक।

सुर मुनि जो कहि लिखि गये उनकी वाक्य है ठीक॥

कामी क्रोधी तरत हैं लोभी नर्क को जाय।

उनका मन हरदम मगन लोभ में रहा समाय॥

महँगू धोबी जाति का पढ़ा नहीं कछु जान॥

रामनाम सतगुरु दियो मुक्ति भक्ति भा ज्ञान।५॥