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३०१ ॥ श्री गोपाल सिंह ॥

पद:-

गिरधर गोपाल मोहन घनश्याम श्याम यदुपति।

मुरली मनोहर माधव बृज राज नाथ जग पति।

राधै रमन बिहारी बनवारी लाल प्यारे।

गोपी औ गोप के धन नन्द यशुमति के दुलारे।

केशव मुकुन्द कान्हा हरि दूध दधि लुटैया।५।

 

दीनन के बन्धु स्वामी भक्तन क दुख हरैया।

करुना निधान भगवन सब के बनाने वाले।

केहि बिधि करै को बरनन सब में समाने वाले।

बिनती मेरी मुरारी सुन लेव रास धारी।

भव का है दुख भारी। अन्धे बहिरे नर औ नारी।१०।

 

दीजै सबन सुधारी। खिलि जाय फिर फुलवारी।

कीजै न अब अबारी। सब लीला है तिहारी।१२।