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३०० ॥ श्री महमूद शाह जी ॥

(अपढ़, सिकन्दराबाद)

 

शेर:-

भजन में लौ लगी जिसकी वही तो भजन कर सकता।

नहीं तो पढ़ि व सुनि लिखिकै कहत बेकार ही बकता।

बिना खाये मिठाई के स्वाद मीठा नहीं लगता।

ऐस ही अमल बिन कीन्हें रूप सन्मुख नहीं खिलता।४।

 

ज्ञान यह तो है मत्थे का इसी से मार्ग नहिं मिलता।

दीनता शान्ति से सुमिरै वही निज वतन में पिलता।

अपढ़ अहमद को मुर्शिद ने सिखलाया वही मन में मेरे भाया।

वही हम तुमको आकर के यहां गा करके बतलाया।८।