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२९ ॥ श्री जगजीवन साहब ॥


दोहा:-

नाम यथारथ शब्द है सब से कहा न जाय ।

अधिकारी जन होहिं जे उनको देय बताय ॥१॥


चौपाई:-

कोटवा ग्राम नाम जगजीवन। सत्य नाम मम सदा है जीवन ॥२॥

शब्द से आवागमन नसाई। शब्दै से प्रभु देंय दिखाई ॥२॥

शब्द ते शब्द खुलत है भाई। रोम रोम धुनि होत सदाई ॥३॥

शब्दै शून्य में जात समाई। शब्द में शब्द तबै मिलि जाई ॥४॥

शब्दै निर्गुन सर्गुन भाई। शब्दै महा प्रकाश कहाई ॥५॥

शब्दै सब में परे है सब से। आदि अंत नाहीं है कब से ॥६॥

शब्दै अगम अथाह कहाई। शब्दै संतन अकथ बताई ॥७॥

शब्द को बिरलै जानै कोई। जानि जाय सो शब्दै होई ॥८॥


दोहा:-

उत्पति प्रलय वा पालिवो शब्दहिं से सब होय ।

सत्य शब्द को जानिये और न दूजो कोय ॥१॥

सूरति अजपा शब्द है जपत आप को आप ।

आप आप को जानिकै स्थिर आपै आप ॥२॥

सतगुरु शब्द को दीन जब तब पायो मैं भेद ।

भयो अभेद अखेद तब मिल्यौ शब्द का भेद ॥३॥


पद:-

शब्द सतगुरु ने दीना है प्रेम तन मन से कीना है॥१॥

शब्द अनहद दरीना है शब्द की तान झीना है ॥२॥

शब्द परकाश कीन्हा है शून्य में शब्द लीना है ॥३॥

शब्द रंकार कीन्हा है शब्द से रूप चीन्हा है ॥४॥

शब्द में शब्द लीना है शब्द सब का नगीना है ॥५॥

शब्द का शब्द जीना है शब्द खाना व पीना है ॥६॥

शब्द ही का करीना है शब्द ही तो प्रवीना है ॥७॥

शब्द सब साज वीना है शब्द रस प्रेम भीना है ॥८॥

शब्द हर दम नवीना है शब्द की गति महीना है ॥९॥

शब्द पापील मीना है शब्द हम विहँग लीना है ॥१०॥

शब्द सब का सफीना है शब्द दीनों को दीना है ॥११॥

शब्द सब से कुलीना है शब्द के सब अधीना है ॥१२॥

शब्द दिन औ महीना है शब्द तिथि औ मलीना है ॥१३॥

शब्द सब की मशीना है शब्द में जक्त लीना है ॥१४॥

शब्द उत्पति को कीना है शब्द पालन प्रवीना है ॥१५॥

शब्द परलय को कीना है शब्द सतपुरुष लीना है ॥१६॥

शब्द जगजीवन चीन्हा है पास में बास लीन्हा है ॥१७॥

शब्द सुनना हसीना है आना जाना कहीं ना है ॥१८॥