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२९० ॥ श्री राम कृष्ण, बिष्णु जी के मुकुट ॥

( एकही बाणी)

 

पद:-

राम श्याम नारायण के शिर के हम मुकुट कहावैं जी।

छबि श्रृंगार छटा की शोभा हम ही अधिक बढ़ावैं जी।

दिब्य हेम में रतन जड़ित था नाना रंग चमकावैं जी।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानै सो यह आनन्द पावै जी।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप सामने छावै जी।५।

 

सुर मुनि मिलैं पियै घट अमृत अनहद सुनि हर्षावैं जी।

नागिनि जगै चक्र षट बेधैं सातों कमल खिलावैं जी।

अन्त त्यागि तन निज पद राजैं गर्भ उपाधि मिटावै जी।८।